गंगा सप्तमी: सुबह-शाम ‘गंगा-गंगा बोलकर करें प्रणाम, तीन जन्मों के पाप हो जाएंगे खत्म, जानें नारद, पद्म व ब्रह्मवैवर्त पुराण की बातें
ब्रह्म वाक्य.
हिन्दू धर्म में गंगा सप्तमी का पर्व आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यह त्योहार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि गंगा सप्तमी के दिन सुबह-शाम ‘गंगा-गंगा बोलकर कर प्रणाम करने से तीन जन्मों के पाप खत्म हो जाते है। हालांकि गंगा सप्तमी के बारे में नारद पुराण, पद्म पुराण व ब्रह्मवैवर्त पुराण में अलग-अलग बातें कही गई है। पुरोहितों का कहना है कि इस दिन उपवास के समय सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
स्वच्छ जल में हल्दी, मेहंदी, इत्र सहित अन्य पूजन सामग्री के साथ फूल व अक्षत से गंगा की पूजा करें। इसके बाद गंगा जल से भरे साफ जल में कुछ बूंद गंगाजल मिलाकर एक हजार मटके का दान करें। वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा नदी के तट में जाकर पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से मां गंगा की कृपा रहती है। वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा के दर्शन विशेष दुर्लभ है। भगवान विष्णु और ब्राह्मणों की कृपा से ऐसा दिन मिल पाता है।
आईए जानते है वो तीन बातें…
1- नारद पुराण:
नारद पुराण की मानें तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को राजा जह्नु ने आक्रोशित होकर गंगाजी को मुहं में समा लिया था। काफी समय बाद अपने दाहिने कान के द्वार से गंगा को बाहर निकाला था। तब से गंगा सप्तमी का व्रत धूमधाम से मनाया जाता है।
2- पद्म पुराण:
पद्म पुराण के पाताल खंड में लिखा है कि वैशाख में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा में नहाएं। इस दिन स्नान करने से पूण्य मिलता है। राजा जह्नु ने गंगा सप्तमी के दिन आवेश में आकर गंगा को पी गए थे। फिर कान से निकाले। बेटी के कारण गंगा को जाह्नवी बोलते है।
3- ब्रह्मवैवर्त पुराण:
मान्यता है कि जब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की स्तुति की। तब शिवजी ने भी संगीत यंत्रों के साथ विशेष धुन गाई। जिससे देवताओं के आंखों और शरीर से पानी निकलने लगा। इस कारण पूरे वैकुंठ लोक में पानी भर गया। इसी पानी को गंगा कहा गया।