15वीं विधानसभा में 128 में सिर्फ 80 बैठकें पाईं, जानिए कैसे हंगामे की भेंट चढ़ गए जनता के मुद्दे
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ब्रह्मवाक्य, भोपाल. बुधवार को 15वीं विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। इस सत्र में 5 बैठकें होनी थी, लेकिन दो बैठकों में ही सिमट गई। इनमें भी किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा नहीं हो पाई। अंतिम सत्र में परंपरागत विदाई भी नहीं हो सका। 15वीं विधानसभा के पांच साल के कार्यकाल पर नजर डालें तो इस दौरान दो सरकारें रहीं। शुरुआत में डेढ़ साल कांग्रेस का शासन रहा। इसके बाद भाजपा आई। इन दोनों सरकारों के कार्यकाल में सदन की 100 बैठकें भी नहीं हो पाई। जनवरी 2019 के सत्र से लेकर जुलाई 2023 तक प्रस्तावित 128 बैठकों में सिर्फ 80 ही हुईं। इनमें भी ज्यादातर समय हंगामे और शोर-शराबों में बीत गया। मतदाता विधायकों को अपना प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा तक इसलिए भेजते हैं कि वहां उनके क्षेत्र के मुद्दों पर चर्चा हो, लेकिन पिछले दो दशक में हुई सदन की बैठकों में काम कम और हंगामा ज्यादा हुआ।
कांग्रेस शासनकाल में सर्वाधिक बैठकें
विधानसभा सत्र की बैठकों की तुलना यदि सरकार के आधार पर की जाए तो भाजपा सरकार की तुलना में कांग्रेस में अधिक बैठकें हुईं। पिछले चार कार्यकाल में भाजपा सरकार रही, इस दौरान प्रत्येक विधानसभा में औसतन डेढ़ दिनों की ही बैठकें र्हुइं।
विदाई की परंपरा भी टूटी
सदन की आखिरी बैठक में विदाई की परंपरा रही है। यानी जब विधानसभा का आखिरी सत्र होता है, तब सौहार्दपूर्ण ढंग से विदाई होती है। अब यह परंपरा भी टूट रही है। 14वीं विस के आखिरी सत्र और 15वीं विस में सदन की आखिरी बैठक में भी हंगामा ही होता रहा।
एक दिन का सत्र 9 मिनट चला, यह भी रेकॉर्ड
इस 15वीं विधानसभा में सबसे कम अवधि के सत्र का रेकॉर्ड भी दर्ज हुआ। मार्च-अप्रेल 2020 का यह सत्र एक दिन का रहा और 9 मिनट ही चला। यह विधानसभा के इतिहास में सबसे कम अवधि का सत्र रहा। 24 से 27 मार्च तक के लिए प्रस्तावित सत्र में 3 बैठकें होनी थीं। इस सत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति विश्वासमत का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था।
सदन में हंगामा और शोर-शराबा लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। सदन में महत्वपूर्ण विधेयक थे, इन पर भी चर्चा होती तो बेहतर कानून बनते। विदाई की परंपरा भी टूट गई। –गिरीश गौतम, विस अध्यक्ष