‘न्यूड होने का मतलब हमेशा अश्लील नहीं’ अर्द्धनग्न शरीर पर पेटिंग मामले में केरल हाईकोर्ट ने किया दोषमुक्त, जानिए पूरा मामला

ब्रह्म वाक्य,तिरुवनंतपुरम. केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को सामाजिक कार्यकर्ता रेहाना फातिमा को पॉक्सो एक्ट मामले में बरी करते हुए कहा कि हमारे समाज में किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर पर आजादी का अधिकार है। कुछ महीनों पहले रेहाना ने अपने नाबालिग बेटे और बेटी से अपने अर्धनग्न शरीर (सेमी न्यूड) पर पेंटिंग बनवाई थी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद उनके खिलाफ पोक्सो, किशोर न्याय व सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

बता दें कि रेहाना फातिमा (Rehana Fathima) का एक वीडियो सामने आया था। जिसमें वह अपने नाबालिग बच्चों के समक्ष अर्धनग्न अवस्था में थीं और उसने अपने शरीर पर ‘‘चित्रकारी” की अनुमति दी थी। इस बात पर आपत्ति जताते हुए कुछ समूहों ने उनके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज करा दी थी। खुद ऊपर लगे आरोपों पर सफाई देते हुए रेहाना ने कोर्ट से कहा, यह वीडियो उसने जानबूझकर समाज में फैली हुई पुरुष सत्ता और महिला शरीर को अश्लील बनाए जाने के खिलाफ बनाया था।

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद केरल हाईकोर्ट ने कहा, उनके नजरिए से उनको यह वीडियो अश्लील नहीं लगा है लिहाजा वह महिला पर लगाए गए आरोपों से उनको बरी करते हुए पुलिस को उनको रिहा करने के आदेश दे रहे हैं।

बतादें कि पुलिस ने अपनी चार्जशीट पर रेहाना के खिलाफ पॉक्सो, आईटी एक्ट की धारा 67B(d) और किशोर न्याय (देखभाल) की धारा 75 की धारा 13, 14 और 15 के तहत अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था।

फातिमा को जमानत देते हुए जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा, हमारे समाज में पुरुष के नग्न शरीर और उसकी स्वतंत्रता पर शायद ही कभी सवाल उठाया जाता है, लेकिन महिलाओं के शरीर की स्वतंत्रता हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है और उनके साथ इस मामले में भेदभाव किया जाता रहा है। यदि वह ऐसा कुछ करती हैं तो उनको धमकाया जाता है, अलग-थलग कर दिया जाता है और उन पर मुकदमा कर दिया जाता है। बेंच ने आगे कहा, एक मां को अपने ही बच्चे से अपने शरीर पर पेंटिंग करवाने को यौन अपराध नहीं कहा जा सकता है, और न ही यह कह जा सकता है कि उसने यह सब अपनी यौन संतुष्टि को के लिए किया है। उन्होंने कहा, इस वीडियो में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे अश्लील कहा जा सके, यह महज एक कलात्मक अभिव्यक्ति है, जिसमें महिला अपने शरीर को अश्लील नहीं बनाए जाने की बात कह रही है

न्यायालय की अहम टिप्पणियां

  • नग्नता को हमेशा अश्लील या अभद्र मानना गलत है। संदर्भ से हटकर किसी तस्वीर को अश्लील नहीं कहा जा सकता।
  • यह वह राज्य है जहां कभी कई निम्न जाति की महिलाएं अपना वक्ष ढकने के अधिकार के लिए आंदोलन कर चुकी हैं।
  • कलाकृति के रूप में देश के मंदिरों में कई देवियों की भी अर्धनग्न मूर्तियां हैं जिन्हें देखकर भक्तिभाव का अहसास होता है।
  • समाज की नैतिकता और कुछ लोगों की भावनाओं के कारण ही किसी को अपराधी मानकर सजा नहीं दी जा सकती।
  • जिस तरह सुंदरता देखने वाले की आंख में होती है, उसी तरह अश्लीलता भी।

BM Dwivedi

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