Gayatri Jayanti: क्यों कहा जाता है गायत्री माता को वेदमाता, जानिए पूजन विधि और महत्व
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ब्रह्मवाक्य धर्म अध्यात्म।Gayatri Jayanti 2023: शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी गायत्री जयंती के रूप में मनाई जाती है। इन्हें ज्ञान और विवेक की देवी माना जाता है। मान्यता है कि गुरु विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को इस दिन पहली बार सर्वसाधारण के लिए बोला था, जिसके बाद इस पवित्र एकादशी को गायत्री जयंती के रूप में जाना जाने लगा। इसलिए इन्हें वेदमाता भी कहा गया है।
देवी का स्वरूप-
धर्मग्रंथों की मानें तो मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप माना जाता है और त्रिमूर्ति मानकर ही इनकी पूजा की जाती है। मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ है। उनके इस रूप में चार मुख चारों वेदों के प्रतीक है और उनका पांचवां मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां के दस हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। त्रिदेवों की आराध्य भी मां गायत्री को ही कहा जाता है। ये ही भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी हैं। महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
देवी गायत्री का विवाह-
एक प्रसंग के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया। परंपरा के अनुसार यज्ञ में ब्रह्माजी को पत्नी सहित ही यज्ञ बैठना था। लेकिन किसी कारण वश ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री को आने में देर हो गई। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था। इसलिए ब्रह्मा जी ने वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।
कैसे करें गायत्री माता की पूजा-
सुबह सुबह प्रातः काल उठकर स्नानं करें, फिर गायत्री माता की प्रतिमा को आसान में पीला वस्त्र बिछाकर गायत्री माता को स्थापित फिर गंगा जल से उस स्थान को पवित्र करें, फिर माता जी का अभिषेक करके घी का दीपक जलाएं इसके बाद फूल, कुंकुम, माला, हल्दी, नैवेध अर्पित करें इसके पश्चात ज्ञातृ माता का 108 बार मंतोच्चारण के साथ जप करें। फिर हवन करते समय माता गायत्री का ध्यान करें साथ आरती करके माता गायत्री को प्रणाम करें।