मैहर गैंगरेप केस: मन में आरोपियों का खौफ बरकरार, न खड़ी हो पाती न बैठ पाती, रात में चिल्लाती है बच्ची, मम्मी बचा लो, मम्मी बचा लो

ब्रह्मवाक्य/सतना। आधी रात सोते समय अचानक मासूम बच्ची चिल्लाती है। मम्मी बचा लो, मम्मी बचा लो। ये दोनों मुझे मार डालेंगे। मुझे जीना है। इन्होंने ही मेरे साथ गलत किया है। यह कहना है गैंगरेप पीड़िता की मां का।

ऐसे गुजर रहे पीड़िता के दिन
गैंगरेप पीड़िता की मां ने कहा कि 12 वर्षीय बच्ची डर के साये में जी रही। मन में आरोपियों का खौफ आज भी बरकरार। वह न खड़ी हो पाती न बैठ पाती। रोजाना शौच व पेशाब कराने मैं लेकर जाती हूं। मेरी गैर मौजूदगी में दादाजी लेकर जाते है। पहले से आधा वजन घट गया है। फिरंगी की तरह उड़ने वाली बच्ची को सहारा देना पड़ता है। पहले घर के बाहर खुले में सोते थे।

अब बच्ची को कच्चे घर के अंदर एक कमरे में बंद कर सुलाते है। छोटी बच्ची डर के कारण मामा के घर चली गई है। क्योंकि उसकी बड़ी बहन गुमशुम रहती है। वह पहले की तरह न खेलती है न कूदती है। न बात करती है। डर है कहीं बड़ी बेटी के अवसाद का असर छोटी पर न पड़ जाए। वह बहन के साथ हुई बर्बरता से अनजान है। ऐसे में मासूम को कुछ दिनों के लिए ननिहाल भेज दिए है।

वह पहले की तरह सुबह 6 बजे जग तो जाती है। पर पैरों में ताकत नहीं की खड़ी हो जाए। ऐसे में सुबह 7 बजे तक शौच कराते है। फिर ब्रेस कराते हुए दलिया, दाल अथवा खिचड़ी देते है। इसके बाद चिकित्सकों द्वारा दी गई दवा दी जाती है। जिससे जल्द से जल्द बच्ची खड़ी हो सके। फिर दो-तीन घंटे पड़ी रहती है। दोपहर में हल्का खाना देते है। इसी तरह शाम व फिर रात हो जाती है।
(जैसा पीड़िता की मां ने पड़ोसियों को बताया)

गैंगरेप करने वाले दोनों आरोपी पुलिस गिरफ्त में।
गैंगरेप करने वाले दोनों आरोपी पुलिस गिरफ्त में।

 

दादा की जुबानी, अस्पताल से छुट्टी होने के बाद की कहानी
62 वर्षीय दादा ने बताया कि 27 जुलाई की दोपहर तीन बजे से बच्ची लापता हुई। रात में घर पहुंचे तो बड़ी पोती नहीं दिखी। क्योंकि बेटे के मौत हो जाने पर दोनों पोतियों के पालने की जिम्मेदारी उन्हीं के सिर पर थी। अनहोनी की आशंका पर रात में ही मैहर थाने पहुंचकर गुमशुदगी दर्ज कराई। इधर 28 जुलाई की सुबह पड़ोसी अंजना वर्मा बच्ची को खोजते हुए जंगल पहुंची। वहां बच्ची गिरते पड़ते हुए आ रही थी। वह दौड़ी और गोद में उठाकर लाई।

तुरंत मैहर अस्पताल लेकर गए। बच्ची के प्राइवेट पार्ट में घुसी एक फिट की लड़की को चिकित्सकों ने निकाला। पर उनको लगा कि बच्ची की आंतें फट गई है। वहीं अंदरूनी चोंट घातक हो सकती है। ऐसे में रीवा संजय गांधी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराए। वहां सात चिकित्सकों की निगरानी में 13 दिन इलाज चला। घाव रिकवर हुए तो 9 अगस्त की रात रीवा से आई एंबुलेंस छोड़कर चली गई।

घर आने पर बच्ची का शरीर देखे है। तब पता चला कि उसका पूरा जीवन नष्ट हो गया है। चिकित्सकों ने पेट में तीन तरफ से चीरा मारकर काट दिए है। पेट के सामने तरफ 13 टांके लगे है। वही पेट के अगल व बगल एक-एक गड्ढा है। ऐसा समझ में आ रहा है कि अंदर से कुछ निकलाने के लिए होल किया गया है। शरीर में चारों तरफ जख्म ही जख्म है। कैसी हमारी बेटी खड़ी होगी यही चिंता है।

बच्ची के पीठ में मवेशियों की तरह घसीटने के निशान है। समझ में आ रहा है कि दोनों रेपिस्टों ने हैवानियत की हद काे पार कर दिया था। उसको पत्थरों में 100 से 200 फीट घसीटे है। रात में मासूम बच्ची की आवाज जंगल से बाहर नहीं आई है। उसके मुंह के कपड़ा आदि ठूसा गया होगा। दोनों आरोपियों को बच्ची पहचानती थी। ऐसे में वह मरा समझकर जंगल में फेंक दिए है। पर मां शारदा ने बचा लिया है।
(जैसा पीड़िता के दादा जी ने बताया)

पीड़िता का झोपड़ा।
पीड़िता का झोपड़ा।

 

चिकित्सकों ने दी जल्दी छुट्टी: दादा
गैंगरेप पीड़िता के दादा ने बताया कि 9 अगस्त की रात 9 बजे रीवा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल से मैहर बच्ची को छोड़ा गया है। अभी बच्ची न खा रही है न पी रही है। वह अपने से चार कदम भी नहीं चल पाती है। उसकी हालत अभी भी सही नहीं है। टांके वाला घाव पक रहा है। अब पता नहीं आगे कोई देखने वाला आएगा भी अथवा नहीं। हमको लगता है कि रीवा के चिकित्सकों ने जल्दबाजी में छुट्टी दे दी है।

अभी रिकवर होने में लगेगा समय
अब न खाने का इंतजाम है पीने का। पहले मां मजदूरी कर दोनों बच्चियों का पेट पालती थी। अब बच्ची छोड़ कर मां जाएगी तो वह मर जाएगी। क्योंकि उसके घावों को रिकवर होने में अभी समय लगेगा। पर अगर मजदूरी करने नहीं जाएगी तो दोनों भूंख से मर जाएंगे। 50 हजार रुपए वारदात के दिन जिला प्रशासन द्वारा मिला था। वह पैसा खत्म हो गया है। अब न पुलिस पैसे दे रही है न प्रशासन।

डर के साये में परिवार
जेल में बंद दोनों आरोपियों के परिजन बच्ची को खत्म कर देने की धमकी दे रहे है। बच्ची को भी लग रहा है कि कहीं कोई आकर हत्या न कर दे। अभी रेप किए है। अब कहीं जान न ले ले। अब माई के द्वार पर अकेले डटे है। वही हमारे परिवार की रक्षा करेगी। लोग तमाशा बस देखने आते है। कोई मदद नहीं कर रहा है। रोजाना कोई न कोई आता है। अब मजदूरी करें या लोगों के साथ टाइम पास।

सीधी से आए पेट पालने, मिला जिंदगी भर का जख्म
गैंगरेप पीड़िता के दादी ने बताया कि पहले अंधरा टोला व दुल्हा देव मंदिर के मध्य वीरान जंगल था। 20 वर्ष पहले हम सीधी जिले के रामपुर नैकिन क्षेत्र के झांझ गांव से पलायन कर मैहर आ गए। उस समय हमारे बस्ती के 50 लोगों का परिवार मैहर आया था। जिसमे तीन देवर व जेठ, चार रिश्तेदारों का परिवार शामिल था। सुना था कि मां के दर में कोई भूखा नहीं रहता। मां ने पेट तो भर दिया। पर मैहर शारदा प्रबंध समिति के कर्मचारी जीवनभर का जख्म दे गए।

16 दिन तक बच्ची को मिली पुलिस सुरक्षा
मां का कहना है कि गैंगरेप के दूसरे दिन यानी 28 जुलाई से लेकर 12 अगस्त तक बच्ची को पुलिस सुरक्षा मिली है। 9 अगस्त तक गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल के गायनी विभाग के आईसीयू वार्ड के अंदर एक महिला पुलिसकर्मी व बाहर पुरुष पुलिसकर्मी तैनात रहा है। छुट्टी होने के तीन दिन बाद तक सुबह व शाम महिला पुलिसकर्मी घर आती जाती रही है। अब एक दिन से कोई नहीं आ रहा है।

जिसने बच्ची को बचाया, उसका रोजगार खतरे में
पड़ोसी अंजना वर्मा (35) ने बताया कि घटना दिनांक को सबसे पहले मैं ही बच्ची को जंगल से खोजकर अस्पताल पहुंचाई थी। ऐसे में मीडिया वाले हमको बढ़ा चढ़ाकर फोटो व वीडियो दिखाए। दोनों आरोपी मां शारदा प्रबंध समिति के कर्मचारी थे। मैं भी मैहर शारदा देवी कैंपस में फुटपाथ पर दुकान लगाती हूं। जिससे परिवार का भरण पोषण चलता है। पर अब लगता है कि कुछ लोग छींन लेंगे।

इनाम की जगह, मिल रहा तिरस्कार
अंजना ने आरोप लगाया कि क्या जिंदगी बचाने की यही सजा मिलेगी। हमको इनाम मिलना चाहिए। पर आज तिरस्कार मिल रहा है। प्रबंध समिति से जुड़े लोग देख लेने की धमकी देते है। डर है कि कहीं हमारे ऊपर हमला न करा दें। हर दिन डर के साये में जी रही हूं। जंगल का मार्ग सूनसान है। ऐसे में बच्चे को लेकर जाती हूं। क्योंकि एक से भला दो। पर खतरा जरूर है। अगर कुछ हुआ तो शारदा प्रबंध समिति जिम्मेदार होगी।

बच्चों के लिए भूख से और पड़ोसी दुकानदारों से लड़ रही हूं
कहा कि पड़ोसी दुकानदार रोजाना धमकी दे रहे है। वह मैहर प्रबंध समिति और नगर पालिका के जिम्मेदारों को बुलाकर डराते है। कहते है कि तुम बहुत होशियार हो गई हो। तालाब में रहकर मगर से वैर करती हो। नतीजा जल्द मिल जाएगा। बच्चों का पेट पालने के लिए भिड़ जाती हूं। क्योंकि पेट की भूख लड़ाई से नहीं बल्कि भोजन से मिटेगी। ऐसे में विरोधियों से रोजाना जवाब देती हूं।

Sameeksha mishra

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