कथावाचक जया किशोरी एक प्रोग्राम के लिए लेती हैं इतने रूपए और क्या करती हैं कमाई के इन पैसों से, जानिए सब कुछ
ब्रह्म वाक्य, डेस्क। जया किशोरी के कई ऐसे भजन हैं जो बेहद लोकप्रिय हैं। जया किशोरी की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ रही है। सोशल मीडिया के इस दौर में उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। यूट्यूब और फेसबुक में जया किशोरी के एक-एक वीडियो पर मिलियन व्यूअर्स आते हैं। इन माध्यम से भी जया किशोरी की टीम खूब रेवेन्यू जेनरेट करती है। जया किशोरी जी का पूरा नाम जया शर्मा हैं और उनका जन्म 13 जुलाई 1995 को राजस्थान के सुजानगढ़ में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ है।
बचपन से ही भगवान की भक्ति में लग गया था मन
जया के पिता का नाम राधे श्याम हरितवाल और उनकी माता का नाम गीता देवीजी हरितपाल है। जया की एक बहन चेतना शर्मा भी है। इनका पूरा परिवार कोलकाता में रहता है। जया किशोरी का मन बचपन से ही भगवान की भक्ति में लग गया था। जया किशोरी जब 6 साल की थीं, तभी से उन्होंने भक्तिमार्ग को अपना लिया था। बचपन में उनके घर में हनुमान जी का सुंदरकांड पढ़ा जाता था। करीब 9 साल की उम्र में जया किशोरी ने संस्कृत में लिंगाष्टकम, रामाष्टकम्, मधुराष्टकम्, शिव तांडव स्तोत्रम्, श्रीरूद्राष्टकम्, शिवपंचाक्षर स्तोत्रम्, दारिद्रय दहन शिव स्तोत्रम् आदि कई स्तोत्रों को गाकर लोगों को प्रभावित किया था। छोटी-सी उम्र में ही भागवत गीता, नानी बाई का मायरो, नरसी का भात जैसी कथाएं सुनाकर पॉपुलर हुईं जया किशोरी आज पूरे देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मशहूर हैं। हालांकि कि वे कोई साधु या संन्यासिनी नहीं हैं, एक सामान्य लड़की हैं।
जया किशोरी की कमाई
जया किशोरी एक कथा जिसमें नानी बाई को मायरो और श्रीमद भागवत कथा होता है, उसके लिए करीब 9 से 10 लाख रुपये तक लेती हैं, आधा अमाउंट बुकिंग के समय ही ले लिया जाता है, बाकी का कथा या मायरा होने के बाद लिया जाता है। इसमें से बड़ा हिस्सा जया किशोरी नारायण सेवा संस्थान को दान कर देती हैं। यह संस्था दिव्यांग और अपंग लोगों के लिए अस्पताल चलाती है। नारायण सेवा संस्थान द्वारा कई गौशालाएं भी चलाई जाती है।
‘किशोरी जी’ की उपाधि और शिक्षा
पढ़ाई की बात करें तो जया किशोरी ने स्कूली पढ़ाई कोलकाता के महादेवी बिडला वर्ल्ड एकेडमी से की। उसके बाद उन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की। जया किशोरी को उनके गुरु पंडित गोविंद राम मिश्रा ने उनके भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम को देखते हुए उन्हें ‘किशोरी जी’ की उपाधि दी थी।