MP Assembly Elections-2023: अमरपाटन विधानसभा में जनसंघ से खुला खाता, हावी रही कांग्रेस, अब बढ़ रहा BJP का दबदबा
संतोष पाण्डेय. सतना। 1957 से अस्तित्व में आई अमरपाटन विधानसभा सीट में खाता तो जनसंघ ने खोला लेकिन यहां कांग्रेस का दबदबा बरकरार रहा। कांग्रेस के प्रत्याशियों ने सात बार चुनावी किला फतह किया। जबकि दो बार जनसंघ, एक बार जनता पार्टी और चार बार भाजपा के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। हालांकि जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा एक ही परिवार के अंग हैं। उस नजरिए से देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा दोनों बराबरी पर है।
रामहित गुप्ता और गुलशेर में हुई दो दशक तक जंग
भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे रामहित गुप्ता अमरपाटन क्षेत्र के थे। जबकि बैरिस्टर गुलशेर अहमद सतना शहर के नजीराबाद के रहने वाले थे। रोज विला के नाम से आज भी उनका आवास आबाद है। उधर रामहित गुप्ता ने भरहुत नगर में अपना आशियाना बना लिया। साथ ही रीवा रोड पर अपना एक होटल भी खोल लिया, लेकिन सियासत की जंग में उन्होंने पहला चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा और 3902 वोट प्राप्त किया। जबकि उनके मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी गुलशेर अहमद 3679 वोट ही प्राप्त कर सके।
वे महज 223 वोट से चुनाव हार गए। इस तरह अमरपाटन विधानसभा सीट में जनसंघ ने अपना खाता खोला लेकिन 1962 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे गुलशेर अहमद जिन्होंने अमरपाटन को अपना सियासी अखाड़ा बनाया। वहां से फिर चुनाव मैदान में थे। उनका मुकाबला जनसंघ के रामहित से था। पिछली हार का बदला लेते हुए गुलशेर अहमद 234 वोट से चुनावी किला फतह कर लिए। गुलशेर को 7856 और रामहित को 76 22 वोट मिले।1967 में फिर रामहित और गुलशेर के बीच जंग हुई।
जनसंघ से रामहित चुनावी मैदान में थे। उन्हें 27449 मत मिले। जबकि कांग्रेस के गुलशेर अहमद 21071 वोट हासिल करने में कामयाब रहे और 6378 वोट से पराजित हो गए। 1972 के चुनाव में कांग्रेस से गुलशेर अहमद ने अपनी पिछली हार का बदला लेते हुए रामहित गुप्ता को करारी शिकस्त दी। गुलशेर को 35417 और जनसंघ के रामहित को 9850 वोट मिले और 25567 मतों के भारी अंतर से गुलशेर अहमद ने यह चुनाव जीता।
यहां यह बताना लाजिमी है कि 1957 से लेकर 2018 तक के पूरे चुनाव में इतने मतों के अंतर से किसी भी प्रत्याशी ने चुनाव नहीं जीता कहने का आशय यह है कि गुलशेर अहमद के नाम सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड अभी भी कायम है। 1977 में एक बारगी फिर रामहित और गुलशेर आमने सामने थे। इस बार रामहित गुप्ता जनता पार्टी से थे। जबकि गुलशेर कांग्रेस के टिकट पर ही किस्मत आजमा रहे थे। बाजी रामहित के हाथ लगी उन्हें 22684 और कांग्रेस उम्मीदवार को 16808 मत मिले और रामहित गुप्ता ने 5876 वोट से यह चुनाव अपने नाम कर लिया।
कांग्रेस से राजेंद्र सिंह की आमद
1980 का चुनाव आते ही गुलशेर अहमद का समय समाप्त हो गया और राजेंद्र कुमार सिंह को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया। जबकि इसी वर्ष भाजपा का उदय हुआ और रामहित गुप्ता भाजपा की टिकट पर राजेंद्र सिंह के सामने थे, लेकिन किस्मत ने राजेंद्र सिंह का साथ दिया और बीजेपी हार गई। राजेंद्र सिंह को 25282 और रामहित को 16269 वोट मिले। इस चुनाव में राजेंद्र सिंह 9013 वोट से चुनाव जीतकर विधायक बने, लेकिन 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदल दिया, भाजपा ने रामहित पर ही भरोसा किया। कांग्रेस ने शुभकरण पटेल को उम्मीदवार घोषित किया।
लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। रामहित 26218 मत पाकर 5575 वोट से चुनाव जीते। जबकि शुभकरण 20643 वोट पर सिमट गए। 1990 में भाजपा के रामहित गुप्ता का पलड़ा फिर भारी रहा। उन्होंने कांग्रेस के बदले प्रत्याशी राजेंद्र सिंह को पटखनी देते हुए 6933 वोट से चुनावी समर फतह किया। रामहित को 32616 और राजेंद्र सिंह को 25683 मत मिले। बता दें कि इस वर्ष के चुनाव में भाजपा बहुमत में आई और सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में सरकार बनी। जिसमें रामहित गुप्ता को वित्त मंत्री बनाया गया। वे कुल मिलाकर तीन बार वित्त मंत्री रहे।
जब कांग्रेस के आए अच्छे दिन
1993 में जो चुनाव हुआ। उसमें राजेंद्र सिंह को कांग्रेस से प्रत्याशी बनाया गया। उन्हें 32876 वोट मिले। इस बार उनका मुकाबला बसपा के सुखलाल कुशवाहा से था। सुखलाल को 28108 मत मिले और वह 4768 वोट से चुनाव हार गए। इस चुनाव के बाद लगातार कांग्रेस प्रत्याशी ही चुनाव जीते रहे। जिसमें राजेंद्र सिंह और उनके पिता रिटायर्ड डीजीपी शिवमोहन सिंह शामिल हैं। 1998 में कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह के पिता शिव मोहन सिंह को टिकट दिया। जबकि भाजपा से उनके सामने रामहित गुप्ता ताल ठोक रहे थे।
अपने 42 वर्ष के राजनीतिक सफर में रामहित गुप्ता का यह अंतिम चुनाव था, लेकिन वह 5436 वोट से चुनाव हार कर घर बैठ गए। उन्हें 27678 वोट मिले। 2003 में कांग्रेस ने फिर राजेंद्र सिंह को आजमाया। इस बार भाजपा ने पंडित कमलाकर चतुर्वेदी को अपना प्रत्याशी बनाया। यहां बता दें कि कमलाकर चतुर्वेदी अमरपाटन क्षेत्र के नहीं है। सतना शहर के मुख्तियार गंज स्थित स्वामी चौराहा में उनका आवास है। बावजूद इसके पार्टी ने उन्हें अमरपाटन से आजमाया, लेकिन कमलाकर चतुर्वेदी पार्टी की उम्मीद पर खरा नहीं उतर सके और उनकी पराजय हो गई। राजेंद्र सिंह 36834 और कमलाकर 32819 वोट पाए और 3943 वोट के अंतर से राजेंद्र सिंह चुनाव जीतकर विधायक बन गए।
भाजपा का खुला फिर खाता
2008 के चुनाव में बसपा के हाथी से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल हुए रामखेलावन पटेल को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया। क्योंकि वह स्थानीय नेता थे। लिहाजा भाजपा ने उन्हें तवज्जो दी। इतना ही नहीं उन्हें टिकट भी दिया गया। उनका मुकाबला कांग्रेस के राजेंद्र कुमार सिंह से था। लगातार तीन बार से चुनाव जीत रही कांग्रेस के विजय रथ को रोकने का दारोमदार रामखेलावन के कंधों पर था। उन्होंने पार्टी के भरोसे को कायम रखते हुए कांग्रेस के विजई रथ के पहिए को जाम करते हुए राजेंद्र सिंह को करारी शिकस्त दी। रामखेलावन जहां 41049 वोट पाए। वहीं राजेंद्र सिंह 36348 मत पाकर 4701 वोट से परास्त हो गए।
राजेंद्र ने लिया हार का बदला
2013 के चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र सिंह और भाजपा के रामखेलावन पटेल ने फिर ताल ठोक कर मैदान में आए। दोनों के बीच मुकाबला खड़ा था। इस बार जनता ने राजेंद्र सिंह को भरपूर आशीर्वाद दिया। उन्हें 48341 और भाजपा उम्मीदवार को 36602 मत मिले और राजेंद्र सिंह ने 11734 वोट से जीत दर्ज कर कांग्रेस का परचम लहराया। यह दूसरा मौका है। जब किसी प्रत्याशी ने सर्वाधिक मतों से जीत अर्जित की। इससे पहले गुलशेर अहमद ने यह रिकॉर्ड बनाया था। तब उन्होंने जनसंघ के रहित गुप्ता को 25567 वोट से हराया था। इस बार जनसंघ से ही बनी भाजपा के प्रत्याशी को कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह ने भारी मतों से हराकर यह रिकॉर्ड बनाया।
फिर जीते रामखेलावन
14वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा से रामखेलावन और कांग्रेस से राजेंद्र सिंह के बीच कांटे की टक्कर थी। अबकि बार रामखेलावन ने राजेंद्र सिंह को पछाड़ा। भाजपा प्रत्याशी को 59836 मत मिले। जबकि राजेन्द्र सिंह भी 56089 मत प्राप्त करने में कामयाब रहे। बावजूद इसके वे 3747 मत से चुनाव गवां बैठे। इस तरह भाजपा का कमल अमरपाटन में खिला।
चार नेताओं का रहा दबदबा
अमरपाटन विधानसभा क्षेत्र में चार नेता ही दबदबा बनाकर सियासत कर रहे थे। इनमें रामहित गुप्ता, गुलशेर अहमद, राजेंद्र सिंह और रामखेलावन के नाम शुमार है। रामहित गुप्ता पांच बार विधायक बने जबकि दूसरे पायदान पर राजेंद्र सिंह है। जिन्होंने चार बार यहां का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा 2 मर्तबा गुलशेर अहमद और रामखेलावन पटेल यहां से विधायक रहे। जबकि महज एक बार राजेंद्र सिंह के पिता शिव मोहन सिंह विधायक बनने में कामयाब रहे।
बता दें कि रामहित गुप्ता आठ बार चुनाव लड़े जिसमें तीन बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जबकि गुलशेर अहमद ने 5 मर्तबा अपना भाग्य आजमाए, लेकिन तीन बार उन्हें भी शिकस्त का सामना करना पड़ा। राजेंद्र कुमार सिंह ने सात बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा। वह भी चार बार जीते और तीन बार पराजय झेलनी पड़ी। इनके पिता एक बार लड़े और चुनाव जीतने में सफल रहे। उन्होंने दोबारा चुनाव नहीं लड़ा। जबकि रामखेलावन बसपा से चुनाव हार चुके थे। उन्हें दोनों बार भाजपा की टिकट पर विजय श्री हासिल हुई।
2023 के लिए ये हैं दावेदार
आगामी नवंबर माह में होने वाले 15वीं विधानसभा के चुनाव के लिए सर्वाधिक दावेदार भाजपा से हैं। मौजूदा विधायक एवं राज्य मंत्री के अलावा चुनाव हार चुके धर्मेंद्र सिंह तिवारी भी प्रबल दावेदार हैं। इनके अलावा अमरपाटन की जनपद अध्यक्ष माया पाण्डेय के पति विनीत पाण्डेय, जिला पंचायत सदस्य पूजा गुप्ता के पति सूरज गुप्ता, जिला पंचायत सदस्य हरीश कांत त्रिपाठी एवं पूर्व जनपद अध्यक्ष एवं जिला पंचायत सदस्य व 1985 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके शुभकरण पटेल के परिवार के सदस्य रूप नारायण पटेल भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं।
अब देखना यह है कि पार्टी मौजूदा विधायक और राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल को टिकट देती है या फिर नए चेहरे को आजमाती है। इसके अलावा कांग्रेस से पिछला चुनाव हार चुके राजेंद्र कुमार सिंह और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष दिलीप मिश्रा भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। हालांकि पिछली बार भी दिलीप मिश्रा टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके अलावा बसपा से छंगेलाल कोल और अशोक गुप्ता टिकट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हैं। वहीं कटहा मगराज निवासी कृष्णमनोज उर्मलिया उर्फ लल्लन भी आप या बसपा से टिकट ले सकते है। इस सीट पर यह माना जा रहा है कि परंपरागत प्रतिद्वंदी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चुनावी टक्कर होगी।